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हलषष्ठी व्रत: संतान सुख के लिए महिलाएं क्यों रखती हैं यह व्रत?

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Halshashthi vrat उत्तर भारत की विशेष धार्मिक परंपराओं में से एक है, जिसे खासतौर पर महिलाएं अपने संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए रखती हैं। 

यह व्रत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है और इसे हरछठ या ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है। 

इस दिन महिलाएं दिनभर निर्जल व्रत रखती हैं और विशेष पूजा-अर्चना करती हैं।

इस व्रत की सबसे खास बात यह है कि इसमें हल से जुते हुए खेतों की चीज़ों को वर्जित माना जाता है। 

व्रती महिलाएं बिना हल चलाए उगाई गई चीज़ों से ही भोजन तैयार करती हैं और पूजा करती हैं। 

यह व्रत मातृत्व की भावना, प्रकृति के प्रति सम्मान और पारंपरिक मान्यताओं का अद्भुत संगम है।

आज का पंचांग से जानें शुभ मुहूर्त।

हलषष्ठी व्रत का महत्व और पौराणिक मान्यता:

हलषष्ठी व्रत भारतीय संस्कृति में मातृत्व और संतान की रक्षा से जुड़ा एक अत्यंत पावन पर्व है। 

यह व्रत विशेष रूप से माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य के लिए करती हैं। 

इस दिन हल यानी खेत जोतने वाले औजार की पूजा की जाती है, जो धरती माता और कृषि संस्कृति का प्रतीक है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्म इसी दिन हुआ था। 

बलराम को हल और मूसल का प्रतीक देवता माना जाता है, इसलिए इस व्रत में हल से जुड़ी चीजों का विशेष महत्व होता है।

यह व्रत महिलाओं की आस्था, शक्ति और मातृत्व प्रेम का प्रतीक माना जाता है। 

लोक परंपराओं में विश्वास है कि इस दिन व्रत रखने से संतान को दीर्घायु, बल और बुद्धि प्राप्त होती है, और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

हलषष्ठी व्रत कब है? जानिए 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त:

हर वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को Halshashthi vrat रखा जाता है। 

यह व्रत विशेष रूप से महिलाओं द्वारा संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। 

अगर आप सोच रहे हैं हलषष्ठी कब है? 

तो बता दें कि साल 2025 में यह व्रत गुरुवार, 14 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।

इस दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और दिनभर निर्जला उपवास रखती हैं। 

पूजा का शुभ समय प्रातः काल से लेकर मध्यान्ह तक माना जाता है।

पवित्र मिट्टी के चूल्हे पर हल से जुते बिना उगे अनाज पकाए जाते हैं, जो व्रत का विशेष भाग होते हैं। 

पंचांग के अनुसार व्रत का पालन शुभ मुहूर्त में करने से विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

व्रत की पूजा विधि: कैसे करें हलषष्ठी व्रत की तैयारी?

हलषष्ठी व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले स्नान करके की जाती है। 

व्रती महिलाएं इस दिन निर्जल या फलाहार व्रत रखती हैं और दिनभर पूजा की तैयारी करती हैं। 

पूजा स्थल को गोबर से लिपकर पवित्र किया जाता है और हलषष्ठी माता की मिट्टी या चित्र रूप में स्थापना की जाती है।

व्रत में खास बात यह है कि इस दिन हल से जोतकर उगाए गए अनाजों का सेवन वर्जित होता है। महिलाएं जौ, चना, दूध, दही और छाछ जैसे पारंपरिक अन्न का भोग चढ़ाती हैं। 

पूजा के बाद हलषष्ठी व्रत कथा का श्रवण किया जाता है और संतान की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है।

इस पावन व्रत की विधि का पालन श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

हलषष्ठी व्रत कथा:

Halshashthi vrat कथा संतान की रक्षा और सुख-समृद्धि से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, 

जिसे व्रत के दिन सुनना अत्यंत शुभ माना जाता है। कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने हलषष्ठी का व्रत रखा था। 

व्रत के नियमों का पालन करते हुए उन्होंने हल से जुते खेतों का अनाज नहीं खाया और पारंपरिक विधि से पूजा की।

ऐसा माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से श्रीकृष्ण को सभी संकटों से सुरक्षा मिली और वे दीर्घायु हुए। 

कथा में यह भी उल्लेख है कि जो महिलाएं इस व्रत को श्रद्धा से करती हैं, 

उन्हें संतान प्राप्ति महापूजा होती है और उनके बच्चों को लंबी उम्र तथा अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है।

इसलिए, हलषष्ठी व्रत कथा का श्रवण इस दिन विशेष रूप से फलदायक माना जाता है 

और पूजा का एक अभिन्न हिस्सा होता है।

आगामी त्यौहारों के लिए भी पढ़ें : रक्षाबंधन 2025: राखी 8 को बांधें या 9 को? जानें सही तिथि और शुभ मुहूर्त

हरछठ व्रत कथा: एक और लोकप्रिय लोककथा:

हरछठ व्रत को लेकर कई लोकमान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा काफी प्रसिद्ध है। 

कथा के अनुसार एक किसान दंपत्ति को कई वर्षों तक संतान नहीं होती थी। 

एक संत के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, लेकिन पुत्र के जन्म के बाद मां ने हल के द्वारा उगाई गई अनाज (जैसे गेहूं, धान) को खा लिया, जो व्रत के नियमों के विरुद्ध था। 

इसके परिणामस्वरूप बच्चे की तबीयत बिगड़ गई। तब एक वृद्धा ने उन्हें हलषष्ठी (हरछठ) व्रत रखने की सलाह दी।

व्रत के नियमों का पालन करते हुए जब मां ने संकल्पपूर्वक पूजा की, तब उसका पुत्र पूरी तरह स्वस्थ हो गया। 

तभी से यह विश्वास बना कि हरछठ व्रत संतान की रक्षा और लंबी उम्र के लिए किया जाता है।

यह कथा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा श्रद्धापूर्वक सुनाई और मानी जाती है।

हलषष्ठी व्रत कब है? व्रत से जुड़ी मान्यताएं और परंपराएं:

हरछठ व्रत को लेकर कई लोकमान्यताएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक कथा काफी प्रसिद्ध है। 

कथा के अनुसार एक किसान दंपत्ति को कई वर्षों तक संतान नहीं होती थी। 

एक संत के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई

लेकिन पुत्र के जन्म के बाद मां ने हल के द्वारा उगाई गई अनाज (जैसे गेहूं, धान) को खा लिया, 

जो व्रत के नियमों के विरुद्ध था। 

इसके परिणामस्वरूप बच्चे की तबीयत बिगड़ गई। तब एक वृद्धा ने उन्हें हलषष्ठी (हरछठ) व्रत रखने की सलाह दी।

व्रत के नियमों का पालन करते हुए जब मां ने संकल्पपूर्वक पूजा की, 

तब उसका पुत्र पूरी तरह स्वस्थ हो गया। 

तभी से यह विश्वास बना कि हरछठ व्रत संतान की रक्षा और लंबी उम्र के लिए किया जाता है।

यह कथा आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा श्रद्धापूर्वक सुनाई और मानी जाती है।

क्षेत्रीय परंपराएं और ग्रामीण भारत में हलषष्ठी का उत्सव:

हलषष्ठी का पर्व खासतौर पर उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। 

विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्य प्रदेश में यह व्रत माताएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। 

गांवों में महिलाएं सुबह जल्दी उठकर तालाब या नदी के पास मिट्टी की देवियों की स्थापना करती हैं और पूजा में हल से जुड़ी चीजों का प्रयोग करती हैं।

इस दिन गाय का दूध-दही वर्जित होता है और सिर्फ छाछ, जौ, चना और गेहूं जैसे बिना हल चलाए उगाए गए अन्न का सेवन किया जाता है। 

महिलाएं लोकगीत गाती हैं और सामूहिक पूजा करती हैं, जिससे आपसी भाईचारा भी बढ़ता है। 

हलषष्ठी का यह पारंपरिक रूप आज भी ग्रामीण भारत में सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव बनाए रखता है।

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चाहे आप पहली बार व्रत रख रही हों या वर्षों से इस परंपरा को निभा रही हों, 

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तो इस हलषष्ठी, AstroLive के साथ करें पूजा का अनुभव और भी खास।

निष्कर्ष:

हलषष्ठी व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, 

बल्कि मातृत्व की भावना और आस्था का जीवंत प्रतीक है। 

इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अच्छे भविष्य की कामना के साथ उपवास रखती हैं और पारंपरिक रीति-रिवाजों से पूजा करती हैं। 

यह पर्व हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ता है और पीढ़ी दर पीढ़ी मां के त्याग, प्रेम और शक्ति का सम्मान करने की प्रेरणा देता है।

ग्रामीण भारत में आज भी यह पर्व बड़े श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है, 

जिससे सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत को भी मजबूती मिलती है।

हलषष्ठी जैसे पर्व हमारे जीवन में श्रद्धा, परंपरा और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर प्रदान करते हैं।

अगर आप भी इस व्रत को सही विधि से करना चाहते हैं, 

तो परंपरा का आदर करते हुए इसे श्रद्धा से निभाएं और आने वाली पीढ़ी को भी इसकी महत्ता से परिचित कराएं।

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