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कालभैरव जयंती पूजा विधि: निडर जीवन के लिए ऐसे करें पूजा

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कालभैरव जयंती हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है जो भगवान शिव के उग्र रूप कालभैरव की आराधना के लिए मनाया जाता है। 

यह पर्व उन भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है जो जीवन में भय, बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति चाहते हैं। 

कालभैरव को काल के नियंता और समय के देवता के रूप में पूजा जाता है, जो अपने भक्तों को हर प्रकार के संकट से बचाते हैं।

कालभैरव जयंती के दिन विधिपूर्वक पूजा करने से व्यक्ति को निडर और सुखी जीवन प्राप्त होता है। 

इस दिन की गई उपासना से डर,

चिंता और मानसिक अशांति दूर होती है तथा जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

कालभैरव जयंती का महत्व:

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कालभैरव जयंती का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने कालभैरव के रूप में अवतार लिया था।

भगवान कालभैरव को शिवजी का सबसे शक्तिशाली और उग्र रूप माना जाता है, जो अन्याय का विनाश करते हैं और धर्म की रक्षा करते हैं।

इस दिन कालभैरव की पूजा करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं।

विशेष रूप से जिन लोगों को भूत-प्रेत की समस्या, काला जादू, शत्रु बाधा या अकारण भय सताता है,

उनके लिए कालभैरव जयंती की पूजा अत्यंत लाभकारी होती है। इसके अलावा,

यह पूजा आर्थिक समस्याओं को दूर करने और जीवन में स्थिरता लाने में भी सहायक है।

सोम प्रदोष व्रत के साथ यह पूजा विशेष फल प्रदान करती है और भक्तों को मानसिक शांति और सुरक्षा का अनुभव कराती है।

काल भैरव जयंती 2025 की तिथि और मुहूर्त:

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कालभैरव जयंती तिथि 2025 की बात करें तो यह पर्व मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष कालभैरव जयंती 12 नवंबर 2025 को पड़ रही है।

कालभैरव जयंती मुहूर्त:

  • अष्टमी तिथि प्रारंभ: 11 नवंबर 2025, रात 11:08 बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 12 नवंबर 2025, रात 10:58 बजे
  • पूजा का शुभ मुहूर्त: 

प्रदोष काल: 22 नवंबर 2024 को शाम 6:07 बजे से 23 नवंबर 2024 को रात 7:56 बजे तक अष्टमी तिथि थी।

निशिता काल: 22 नवंबर 2024 को रात 11:41 बजे से 23 नवंबर 2024 को रात 12:34 बजे तक। 

ध्यान रखें कि कालभैरव की पूजा रात्रि के समय करना सबसे अधिक फलदायी माना जाता है, क्योंकि कालभैरव रात्रि के देवता हैं।

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कालभैरव जयंती पूजा विधि: संपूर्ण प्रक्रिया:

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कालभैरव जयंती की पूजा विधिपूर्वक करने से अधिकतम लाभ मिलता है। आइए जानें विस्तार से पूजा की सम्पूर्ण प्रक्रिया:

पूजा सामग्री

पूजा शुरू करने से पहले निम्नलिखित सामग्री एकत्रित करें:

  • कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर
  • काले तिल, उड़द की दाल
  • सरसों का तेल और दीपक
  • धूप, अगरबत्ती, कपूर
  • काले कपड़े का वस्त्र
  • नीले या काले फूल
  • नारियल, पान, सुपारी
  • गुड़, शहद
  • काली मिर्च
  • भांग या धतूरा (यदि संभव हो)

विधि:

प्रथम चरण:

स्नान और संकल्प: सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

काले या गहरे रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें और संकल्प लें कि आप कालभैरव जयंती की पूजा कर रहे हैं।

द्वितीय चरण:

स्थापना: एक चौकी पर काला वस्त्र बिछाएं और उस पर कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।

कलश स्थापना करें और उसमें जल, पान, सुपारी और सिक्का डालें।

तृतीय चरण:

षोडशोपचार पूजन: अब भगवान कालभैरव का षोडशोपचार पूजन करें। सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करें, फिर कालभैरव जी को जल से स्नान कराएं। 

इसके बाद चंदन, रोली, फूल, धूप, दीपक अर्पित करें। काले तिल और उड़द की दाल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है।

चतुर्थ चरण: 

भोग अर्पण: कालभैरव जी को गुड़, शहद, मिठाई और फलों का भोग लगाएं। सरसों के तेल का दीपक जलाकर उनकी आरती करें।

पंचम चरण:

मंत्र जाप: अब कालभैरव के मंत्रों का जाप करें। कम से कम 108 बार मंत्र जाप अवश्य करें।

कालभैरव जयंती संस्कृत मंत्र:

कालभैरव जयंती संस्कृत मंत्र का जाप करना अत्यंत फलदायी होता है। यहां कुछ प्रमुख मंत्र दिए गए हैं:

मूल मंत्र: “ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं॥”

कालभैरव गायत्री मंत्र: “ॐ काल भैरवाय विद्महे महा देवाय धीमहि तन्नो भैरवः प्रचोदयात्॥”

बीज मंत्र: “ॐ ह्रीं क्लीं काल भैरवाय नमः॥”

इन मंत्रों का जाप करते समय मन में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखें। मंत्र जाप के दौरान रुद्राक्ष की माला का उपयोग करना शुभ होता है।

कालभैरव जयंती व्रत कथा:

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कालभैरव जयंती व्रत रखने वालों को कथा अवश्य सुननी चाहिए। कालभैरव जयंती कथा भगवान शिव की महिमा और न्याय के महत्व को दर्शाती है। कथा इस प्रकार है:

प्राचीन काल की बात है, ब्रह्मा जी को अपनी सृष्टि रचना पर अहंकार हो गया। वे स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने लगे। 

एक दिन जब ब्रह्मा जी और विष्णु जी में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ,

तो भगवान शिव ने एक ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर दोनों को चुनौती दी कि जो इस स्तंभ का आदि या अंत खोज लेगा, वही श्रेष्ठ है।

विष्णु जी ने विनम्रतापूर्वक अपनी पराजय स्वीकार कर ली,

लेकिन ब्रह्मा जी ने छल का सहारा लिया और झूठ बोला कि उन्होंने स्तंभ का अंत देख लिया है। 

इस झूठ से क्रोधित होकर भगवान शिव ने कालभैरव रूप धारण किया और ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया।

तभी से कालभैरव को न्याय और सत्य के रक्षक के रूप में पूजा जाता है। वे असत्य, अहंकार और अन्याय का नाश करते हैं।

कालभैरव जयंती पर विशेष उपाय:

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कालभैरव जयंती के दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन की समस्याएं दूर होती हैं:

1. भय से मुक्ति के लिए: काले तिल और सरसों के तेल को मिलाकर शनिवार को किसी पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाएं।

2. शत्रु बाधा से बचाव: कालभैरव यंत्र को लाल कपड़े में लपेटकर अपने पास रखें।

3. आर्थिक समृद्धि: काले कुत्ते को रोटी खिलाएं और गरीबों को काले वस्त्र दान करें।

4. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा: घर के मुख्य द्वार पर काली मिर्च और काला नमक लटकाएं।

5. मानसिक शांति: रोजाना सुबह कालभैरव चालीसा का पाठ करें।


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कालभैरव जयंती पूजा के लाभ:

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कालभैरव जयंती पर श्रद्धापूर्वक पूजा करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं:

  • जीवन से भय और चिंता का नाश होता है
  • शत्रुओं पर विजय मिलती है
  • भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है
  • आर्थिक स्थिति में सुधार होता है
  • मानसिक शांति और आत्मविश्वास बढ़ता है
  • कानूनी मामलों में सफलता मिलती है
  • अकाल मृत्यु का भय दूर होता है
  • परिवार में सुख-शांति बनी रहती है

कालभैरव-जयंती के दिन किया गया व्रत और पूजन सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला माना जाता है।

निष्कर्ष:

कालभैरव जयंती एक अत्यंत शक्तिशाली और महत्वपूर्ण पर्व है जो हमें निडर और सुखी जीवन जीने की प्रेरणा देता है। 

इस दिन विधिपूर्वक पूजा करने से जीवन की सभी समस्याओं और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। 

कालभैरव जयंती पर पूजा करते समय मन में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखना आवश्यक है। 

सही मुहूर्त में, सही विधि से की गई पूजा आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है और आपको हर प्रकार के भय से मुक्त करती है। 

इस पवित्र दिन पर भगवान कालभैरव की कृपा प्राप्त करके आप अपने जीवन को नई दिशा दे सकते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न 1: कालभैरव जयंती कब मनाई जाती है? 

उत्तर: कालभैरव जयंती मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह 28 नवंबर को है।

प्रश्न 2: कालभैरव की पूजा किस समय करनी चाहिए? 

उत्तर: कालभैरव की पूजा रात्रि के समय सबसे अधिक फलदायी होती है, विशेषकर मध्यरात्रि के समय। हालांकि, प्रातःकाल की पूजा भी शुभ मानी जाती है।

प्रश्न 3: कालभैरव को क्या भोग लगाना चाहिए? 

उत्तर: कालभैरव को गुड़, शहद, मिठाई, उड़द की दाल, काले तिल और सरसों का तेल चढ़ाना शुभ होता है। भांग और धतूरा भी अर्पित किया जा सकता है।

प्रश्न 4: कालभैरव जयंती पर व्रत कैसे रखें? 

उत्तर: इस दिन सूर्योदय से लेकर पूजा समाप्त होने तक उपवास रखें। केवल फलाहार या एक समय भोजन भी कर सकते हैं। व्रत में सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।

प्रश्न 5: कालभैरव पूजा से क्या लाभ होते हैं? 

उत्तर: इस पूजा से भय, शत्रु बाधा, नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है तथा जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

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