गोवर्धन पूजा भारत के सबसे प्रिय और भक्तिपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह दीवाली के ठीक अगले दिन मनाया जाता है और भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर गोवर्धनवासियों को भारी बारिश से बचाने के दिव्य कृत्य की याद में मनाया जाता है। यह त्योहार प्रकृति, गायों और पृथ्वी की समृद्धि के प्रति आभार व्यक्त करने का अवसर है।
पूरे भारत में लोग शुभ गोवर्धन पूजा के लिए उत्साहित रहते हैं। लोग गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाते हैं, पूजा करते हैं और परिवार व मित्रों के साथ प्रसाद और मिठाइयाँ बांटते हैं। यह सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखता, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बंधनों को भी मजबूत करता है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि गोवर्धन पूजा कब है, इसका महत्त्व क्या है, तैयारी कैसे करें और इसे सही मुहूर्त में कैसे मनाएँ।l
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा हिन्दू धर्म में विशेष स्थान रखती है। यह उस दिन की याद दिलाती है जब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों को इंद्रदेव द्वारा भेजी गई भारी बारिश से बचाया था। इस दिव्य कृत्य में भक्ति, साहस और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश निहित है।
यह त्योहार हमें सिखाता है कि हमें प्रकृति और गायों का सम्मान करना चाहिए। भक्त अपने घर में छोटे गोवर्धन पर्वत बनाते हैं, उन्हें फूलों, घास और अनाज से सजाते हैं और दूध, मिठाई और फल अर्पित करते हैं।
सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह त्योहार महत्वपूर्ण है। परिवार और समुदाय एकत्र होते हैं, भजन गाते हैं, आरती करते हैं और प्रसाद बाँटते हैं। इस प्रकार यह उत्सव न केवल भक्ति का, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मेलजोल का भी प्रतीक है।
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गोवर्धन पूजा कब है?

वर्ष 2025 में Govardhan Puja 2025 2 नवंबर को मनाई जाएगी। यह दीवाली और धनतेरस के अगले दिन आता है और कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को पड़ता है, जिसे हिन्दू पंचांग में अत्यंत शुभ माना गया है।
गोवर्धन पूजा मुहूर्त प्रायः सुबह के समय, सूर्योदय के तुरंत बाद होता है। इस समय पूजा करने से आध्यात्मिक लाभ अधिकतम होते हैं।
सही मुहूर्त में पूजा करने से न केवल भगवान कृष्ण के दिव्य कृत्य का सम्मान होता है, बल्कि पूरे परिवार और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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गोवर्धन पूजा की तैयारी कैसे करें?
गोवर्धन पूजा की तैयारी पूजा से पहले ही शुरू हो जाती है। उचित तैयारी से यह त्योहार और अधिक शुभ और भक्तिपूर्ण बनता है।
1. घर की सफाई और सजावट
- घर को पूरी तरह साफ किया जाता है ताकि सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर सके।
- गोवर्धन पर्वत के चारों ओर रंगोली, फूल और दीये सजाए जाते हैं।
2. गोवर्धन पर्वत की स्थापना
- परंपरागत रूप से गोवर्धन पर्वत को गोबर से बनाते हैं।
- इसे फूलों, अनाज और छोटे पेड़ों से सजाया जाता है।
- पर्यावरण के प्रति जागरूक लोग प्राकृतिक और इको-फ्रेंडली विकल्पों का उपयोग करते हैं।
3. प्रसाद की व्यवस्था
- फल, मिठाई, दूध और अन्य शाकाहारी सामग्री तैयार की जाती है।
- यह सभी वस्तुएं पर्वत पर अर्पित की जाती हैं।
4. पारंपरिक वस्त्र पहनना
- भक्त शुभ रंग जैसे पीला, लाल और नारंगी पहनते हैं।
- गहनों और आभूषणों से उत्सव का माहौल बढ़ाया जाता है।
इन तैयारियों से शुभ गोवर्धन पूजा का माहौल पूरे घर में फैलता है और पूजा अधिक अर्थपूर्ण बनती है।
गोवर्धन पूजा में अनुसरण करने वाले अनुष्ठान

इस दिन की मुख्य विशेषता है श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करना।
1. गोवर्धन पर्वत की पूजा
- फूल, अनाज और मिठाई अर्पित की जाती है।
- छोटे मिट्टी के गो-प्रतिमाएं (गो माता) पर्वत के आसपास रखी जाती हैं।
2. आरती और भजन
- सुबह जल्दी आरती की जाती है।
- भगवान कृष्ण को समर्पित भजन गाने से आध्यात्मिक माहौल बनता है।
3. गो सेवा
- गायों को हरा चारा, फल और दूध खिलाना अनिवार्य है।
- यह अनुष्ठान प्रकृति और जीवन के प्रति आभार व्यक्त करता है।
4. प्रसाद तैयार करना और बाँटना
- अर्पित वस्तुएँ परिवार, मित्र और पड़ोसियों में बांटी जाती हैं।
- परंपरागत मिठाइयाँ जैसे लड्डू, पेड़ा और खीर आमतौर पर दी जाती हैं।
5. सामुदायिक उत्सव
- कई स्थानों पर सामूहिक पूजा, भजन और अन्नकूट महोत्सव आयोजित किया जाता है।
- यह सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।
इन अनुष्ठानों का पालन करने से गोवर्धन पूजा भक्तिपूर्ण, आनंदमय और आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनती है।
क्षेत्रीय परंपराएँ और भिन्नताएँ
भारत के विभिन्न हिस्सों में गोवर्धन पूजा का उत्सव अलग ढंग से मनाया जाता है।
1. उत्तर भारत
- उत्तर प्रदेश और राजस्थान में बड़े गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृतियाँ बनाई जाती हैं।
- सामुदायिक आरती और भजन आम हैं, और स्थानीय मिठाइयाँ प्रसाद के रूप में बांटी जाती हैं।
2. पश्चिम भारत
- गुजरात और महाराष्ट्र में अन्नकूट से जुड़ा हुआ है।
- हजारों खाद्य पदार्थ भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाते हैं।
3. ग्रामीण परंपराएँ
- गाँवों में किसान गायों को खिलाते हैं और फूल और सिंदूर से सजाते हैं।
- बच्चे मिट्टी के छोटे पर्वत बनाकर भजन गाते हैं।
4. विशेष सामुदायिक उत्सव
- कई समुदाय सांस्कृतिक कार्यक्रम, लोकनृत्य और कृष्ण लीला प्रस्तुत करते हैं।
- इससे नई पीढ़ी में त्योहार की शिक्षा और भक्ति का संचार होता है।
गोवर्धन पूजा के लिए ज्योतिषीय टिप्स

ज्योतिष अनुसार सही समय पर पूजा करने से शुभ गोवर्धन पूजा के आध्यात्मिक लाभ बढ़ जाते हैं।
1. शुभ मुहूर्त की जाँच
- सूर्योदय के बाद के समय को पूजा के लिए आदर्श माना जाता है।
- पंचांग या ज्योतिष ऐप्स से Govardhan Puja Muhurat की पुष्टि करें।
2. ग्रहों का प्रभाव
- कुछ ग्रह स्थिति पूजा के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाती हैं।
3. व्यक्तिगत ज्योतिषीय मार्गदर्शन
- AstroLive जैसे टूल्स से व्यक्तिगत शुभ समय और अर्पण की सलाह ली जा सकती है।
4. ज्योतिषीय टिप्स के लाभ
- परिवार के सदस्यों पर सकारात्मक ऊर्जा और आशीर्वाद।
- अनुष्ठानों का सहज और सुचारू संचालन।
- दीवाली के बाद उत्सव का सुखद आरंभ।
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आधुनिक समय में गोवर्धन पूजा: क्या बदला है और कैसे मनाई जा रही है?

आज की तेज़ रफ्तार और व्यस्त जीवनशैली में लोग परंपराओं को निभाने के साथ-साथ सुविधाजनक तरीकों को भी अपनाने लगे हैं। इससे त्योहारों की भावना तो बनी रहती है, साथ ही समय और संसाधनों का भी सही उपयोग होता है।
डिजिटल कनेक्टिविटी
आजकल कई परिवार एक ही जगह पर इकट्ठे नहीं हो पाते। ऐसे में लोग ऑनलाइन आरती और भजन में शामिल होकर एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। कई मंदिर और समुदाय लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिए गोवर्धन पूजा का सीधा प्रसारण भी करते हैं, जिससे भक्त दूर रहते हुए भी उत्सव में भाग ले सकते हैं।
छोटे पैमाने पर उत्सव
शहरों में सीमित जगह होने के कारण लोग ट्रे, टेबल या छोटे कोनों में गोवर्धन पर्वत बनाते हैं। मिट्टी, गोबर या इको-फ्रेंडली सामग्री से बने छोटे पर्वत न केवल सुंदर दिखते हैं, बल्कि पूजा के सभी पारंपरिक तत्वों को भी शामिल करते हैं।
सुविधाजनक तैयारी
कामकाजी लोगों के लिए पूजा की तैयारियाँ आसान बनाने हेतु बाजार में रेडीमेड पूजा किट, तैयार प्रसाद पैक और सजावट के सेट उपलब्ध हैं। इससे कम समय में भी पारंपरिक तरीके से पूजा करना संभव हो जाता है।
सामुदायिक आयोजन
अपार्टमेंट्स और हाउसिंग सोसाइटियों में सामूहिक गोवर्धन पूजा का चलन तेजी से बढ़ रहा है। इसमें एक ही स्थान पर गोवर्धन पर्वत की स्थापना, भजन संध्या, आरती और अन्नकूट प्रसाद वितरण किया जाता है। इससे समुदाय में एकता बढ़ती है और त्योहार का उत्साह कई गुना हो जाता है।
इस प्रकार आधुनिक और पारंपरिक तरीकों का यह संगम न केवल समयानुकूल है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी गोवर्धन पूजा की महत्ता से जोड़ता है।

निष्कर्ष
गोवर्धन पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आभार, भक्ति और प्रकृति के साथ सामंजस्य का प्रतीक है। भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा, गो सेवा, अन्नकूट और सामुदायिक उत्सव हर पहलू में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक संदेश देता है।
शुभ गोवर्धन पूजा 2025 को सही मुहूर्त, भक्ति और पर्यावरण के प्रति जागरूकता के साथ मनाने से परिवार में समृद्धि, शांति और एकता आती है। आधुनिक समय में भी यह त्योहार समुदाय और संस्कृति को जीवित रखता है।
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FAQs
Q1: गोवर्धन पूजा क्या है और क्यों मनाई जाती है?
गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुलवासियों को बारिश से बचाने की कथा पर आधारित है। यह भक्ति, साहस और प्रकृति के सम्मान का प्रतीक है।
Q2: गोवर्धन पूजा कब है 2025?
2025 में गोवर्धन पूजा 2 नवंबर को मनाई जाएगी, दीवाली और धनतेरस के अगले दिन।
Q3: गोवर्धन पूजा मुहूर्त क्या है?
पूजा का शुभ समय सूर्योदय के तुरंत बाद सुबह के समय होता है, जिससे आध्यात्मिक लाभ अधिकतम मिलते हैं।
Q4: लोग गोवर्धन पूजा की तैयारी कैसे करते हैं?
घर की सफाई, गोवर्धन पर्वत की स्थापना, प्रसाद की व्यवस्था और पारंपरिक वस्त्र पहनना मुख्य तैयारियाँ हैं।