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हरितालिका तीज पर व्रत, पूजा और कथा कैसे करें जानिए?

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भारत की संस्कृति विविध रंगों से भरी हुई है, और उसमें त्योहारों की एक लंबी श्रृंखला है जो समाज को न केवल जोड़ती है, बल्कि आध्यात्मिक और पारिवारिक मूल्यों को भी मजबूती देती है। इन्हीं त्योहारों में से एक है हरितालिका तीज, जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा श्रद्धा और संकल्प के साथ मनाया जाता है। यह व्रत देवी पार्वती के तप और भगवान शिव के प्रति उनके समर्पण की याद दिलाता है।

हरितालिका तीज क्या है?

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यह एक अत्यंत पावन और महत्वपूरण हिंदू पर्व है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, तथा नेपाल में महिलाओं द्वारा श्रद्धा और आस्था से मनाया जाता है।

यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखकर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं। विवाहित महिलाएं यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख-शांति और पारिवारिक समृद्धि की कामना के लिए करती हैं, जबकि अविवाहित कन्याएं इसे योग्य और आदर्श जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु रखती हैं।

हरितालिका तीज को हरियाली तीज से भिन्न माना जाता है, हालांकि दोनों तीजें सावन-भादो के महीनों में आती हैं और महिलाओं से जुड़े उत्सव होते हैं। हरियाली तीज, जो सावन महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, वर्षा ऋतु के आगमन और प्रकृति की हरियाली का उत्सव है। इस दिन महिलाएं झूले झूलती हैं, मेंहदी लगाती हैं और पारंपरिक लोकगीत गाती हैं। यह पर्व भी भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना जाता है। ठीक वैसे ही जैसे सावन सोमवार के व्रत भगवान शिव को समर्पित होते हैं, हरियाली तीज भी दांपत्य प्रेम और शिव-पार्वती की भक्ति का पर्व बन जाती है।

दोनों तीजें आस्था, प्रेम और पारिवारिक सौहार्द का प्रतीक हैं। जहां हरियाली तीज में उल्लास और श्रृंगार की छटा देखने को मिलती है, वहीं दूसरी तीज में तप, संयम और भक्ति की गहराई झलकती है।

हरितालिका तीज कब है 2025 में?

हरितालिका तीज 2025 में मंगलवार, 26 अगस्त को मनाई जाएगी। यह पर्व भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है।

  • तृतीया तिथि प्रारंभ: सोमवार, 25 अगस्त को शाम 5:35 बजे
  • तृतीया तिथि समाप्त: मंगलवार, 26 अगस्त को दोपहर 3:50 बजे
  • प्रातःकाल पूजा मुहूर्त: मंगलवार सुबह 6:00 बजे से 8:45 बजे तक

पूजा के लिए प्रातःकाल का समय श्रेष्ठ माना गया है, और स्थानीय पंचांग अनुसार मुहूर्त देखना शुभ होता है।

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हरितालिका तीज की आध्यात्मिक महत्ता

यह पर्व केवल उपवास का दिन नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा है। महिलाएं बिना जल और अन्न के उपवास रखती हैं, जिसे निर्जला व्रत कहा जाता है। यह त्याग, श्रद्धा और आस्था का अद्वितीय प्रतीक है।

इस पर्व का महत्व माता पार्वती की कठिन तपस्या से जुड़ा है। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर साधना की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें अर्धांगिनी रूप में स्वीकार किया। यह व्रत महिलाओं को पार्वती जी की तरह संकल्प, भक्ति और आत्मिक बल से जुड़ने की प्रेरणा देता है।

हरितालिका तीज व्रत कथा

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यह व्रत कथा देवी पार्वती की अटूट तपस्या और समर्पण पर आधारित है। मान्यता है कि उन्होंने शिव को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय किया था। लेकिन उनके पिता हिमालय ने उनकी इच्छा के विपरीत उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया।

इस बात से दुखी होकर पार्वती जी की सखी उन्हें चुपचाप एक घने जंगल में ले गईं। वहीं पार्वती जी ने बिना अन्न-जल के कठोर तप किया और मिट्टी से शिवलिंग बनाकर शिव जी की आराधना की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।

इसी घटना की याद में यह व्रत रखा जाता है। यह कथा पूजा के समय सुनी और सुनाई जाती है, जिससे श्रद्धालुओं को आस्था, प्रेम और दृढ़ संकल्प की प्रेरणा मिलती है।

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हरतालिका व्रत: नारी सशक्तिकरण का प्रतीक

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हरतालिका व्रत नारी शक्ति का प्रतीक है। यह व्रत स्त्रियों की आंतरिक शक्ति, धैर्य और संकल्प को दर्शाता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि आत्म-नियंत्रण, मानसिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है।

यह व्रत महिलाओं को अपनी ऊर्जा को केंद्रित करने, परंपराओं को संरक्षित करने, और समाज में अपनी भूमिका को सशक्त करने का अवसर देता है।

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हरितालिका तीज की पूजा विधि

यह व्रत अत्यंत श्रद्धा और अनुशासन से किया जाता है। इसका संबंध देवी पार्वती की भक्ति और शिव के प्रति उनके समर्पण से जुड़ा है। इसकी पूजा विधि इस प्रकार है:

स्नान एवं श्रृंगार:

प्रातःकाल महिलाएं पवित्र स्नान कर स्वच्छ लाल, हरे या पीले रंग के पारंपरिक वस्त्र धारण करती हैं। उसके बाद मेंहदी, चूड़ियाँ, बिंदी, सिंदूर, काजल और आभूषणों से पूर्ण श्रृंगार करती हैं, जो सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।

पूजा स्थल की तैयारी:

घर या मंदिर में एक स्वच्छ और शांत स्थान को पूजा के लिए चुना जाता है। वहां पर रंगोली बनाई जाती है और फूलों से सजावट की जाती है। एक लकड़ी की चौकी पर लाल या पीले कपड़े को बिछाकर शिव-पार्वती की मूर्तियां या चित्र स्थापित किए जाते हैं।

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शिव और पार्वती जी की मिट्टी की मूर्तियां या खरीदी हुई मूर्तियां विधिपूर्वक चौकी पर विराजमान की जाती हैं। शिवलिंग भी मिट्टी से बनाकर पूजा में शामिल किया जा सकता है।

सामग्री अर्पण:

पूजा में बेलपत्र, धतूरा, आक, कमल और अन्य पुष्प अर्पित किए जाते हैं। भोग में फल, नारियल, मिठाई, ककड़ी, हलवा, पूड़ी, खीर, पंचामृत आदि चढ़ाया जाता है।

व्रत कथा श्रवण:

पूजा के समय इस व्रत से जुड़ी कथा का पाठ या श्रवण आवश्यक होता है। यह कथा देवी पार्वती की तपस्या और शिव से उनके विवाह की पौराणिक घटना को स्मरण कराती है।

आरती और भजन:

घी का दीपक, अगरबत्ती जलाकर भगवान शिव और माता पार्वती की आरती की जाती है। इसके साथ ही मंगल गीत, भजन और स्तुति का गायन किया जाता है।

जागरण और संकल्प:

कई महिलाएं संपूर्ण रात्रि जागरण करती हैं, भजन-कीर्तन करती हैं और शिव-पार्वती का ध्यान करती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत का संकल्प लेकर अन्न-जल ग्रहण नहीं करतीं।

यह व्रत नारी शक्ति की आस्था, समर्पण और संकल्प का प्रतीक है, जो न केवल वैवाहिक जीवन में सुख-शांति लाने का माध्यम है, बल्कि आत्मिक शुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

सौंदर्य और श्रृंगार का महत्व

इस दिन महिलाएं विशेष श्रृंगार करती हैं। मेंहदी लगाने की परंपरा बहुत ही लोकप्रिय है और यह माना जाता है कि मेंहदी का रंग जितना गहरा होगा, पति का प्रेम उतना ही अधिक होगा। पारंपरिक वस्त्र, आभूषण, और मंगलसूत्र पहनना नारी के सौंदर्य और भक्ति का प्रतीक है।

आधुनिक युग में हरितालिका तीज का महत्व

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भागदौड़ और तकनीक से भरी जिंदगी में हरितालिका तीज जैसे पर्व हमें अपनी जड़ों की ओर लौटने का अवसर देते हैं। यह दिन हमें याद दिलाता है कि नारी की शक्ति, प्रेम, बलिदान और विश्वास को मनाने का उत्सव भी आवश्यक है।

परिवार एकजुट होता है, परंपराएं जीवित रहती हैं, और नई पीढ़ी को सांस्कृतिक धरोहर का अनुभव होता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से हरितालिका तीज

हरितालिका तीज की पूजा करते समय सही मुहूर्त का विशेष महत्व होता है। कई महिलाएं अपने नाम, राशि और पति की जन्मकुंडली अनुसार पूजा का समय तय करती हैं।

इस कार्य में AstroLive जैसे अनुभवी ज्योतिष परामर्श मंचों की सहायता ली जा सकती है। AstroLive के विशेषज्ञ पंडित एवं ज्योतिषी आपको व्यक्तिगत पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, और व्रत से जुड़े संकल्प आदि के लिए मार्गदर्शन देते हैं।

अगर आप इस दिन पूजा, संकल्प या कथा को सही तरीके से करना चाहती हैं, तो AstroLive से सलाह लेना एक अच्छा विकल्प है।

अंतिम विचार

यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण, शक्ति और आत्मिक ऊर्जा की जीवंत अभिव्यक्ति है। यह दिन नारी के आंतरिक साहस, आस्था और सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति सम्मान को प्रतीक रूप में प्रस्तुत करता है।

इस वर्ष, 26 अगस्त 2025 को आने वाली हरितालिका तीज पर आप भी इस पर्व की पवित्रता को आत्मसात करें। हरितालिका तीज व्रत कथा को श्रद्धा से सुनें, और देवी पार्वती की तरह अपने जीवन में संकल्प, शक्ति और प्रेम को प्रकट करें।

यदि आपको इस दिन के लिए विशेष पूजन विधि, मुहूर्त या कुंडली आधारित सुझाव चाहिए, तो AstroLive के अनुभवी ज्योतिषाचार्यों से सलाह ज़रूर लें। यह न केवल आपकी पूजा को पूर्ण बनाएगा, बल्कि आस्था को और भी गहरा करेगा।

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