भारत में पर्व और त्यौहार केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और आध्यात्मिक सीख के अवसर भी होते हैं। इन्हीं में से एक है गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi), जिसे विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
हर साल की तरह, इस साल भी 27 अगस्त 2025 (बुधवार) को गणेश चतुर्थी का पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाएगा। लोग अपने घरों और पंडालों में गणपति बप्पा की प्रतिमा स्थापित कर शुभ मुहूर्त में पूजा-अर्चना करेंगे।
Ganesh Chaturthi का यह पर्व दस दिनों तक चलता है, जिसकी शुरुआत भगवान गणेश के जन्मदिन से होती है। ऐसा माना जाता है कि इन दस दिनों में बप्पा खुद धरती पर आकर अपने भक्तों के सारे दुख दूर करते हैं।
आइए जानते हैं, Ganesh Chaturthi 2025 की तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और उन अद्भुत कथाओं को, जो इस पर्व को और भी खास बना देती हैं।
शुभ मुहूर्त जानने के लिए देखें आज का पंचांग।
गणेश चतुर्थी कब है (Ganesh Chaturthi Kab Hai)?
Ganesh Chaturthi हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह पावन पर्व बुधवार, 27 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।
हिंदू पंचांग के हिसाब से, Ganesh Chaturthi की शुरुआत 26 अगस्त को दोपहर 01 बजकर 54 मिनट पर होगी और इसका समापन अगले दिन, यानी 27 अगस्त को दोपहर 03 बजकर 44 मिनट पर होगा। चूंकि गणेश जी की पूजा और स्थापना दोपहर के समय ही सबसे शुभ मानी जाती है, इसलिए Ganesh Chaturthi का मुख्य पर्व 27 अगस्त 2025, बुधवार को ही मनाया जाएगा।
Ganesh Chaturthi तिथि आरंभ: 26 अगस्त 2025, दोपहर 01:54 बजे
Ganesh Chaturthi तिथि समाप्त: 27 अगस्त 2025, दोपहर 3:44 बजे
प्रतिमा स्थापना और पूजा का सर्वोत्तम मुहूर्त: 27 अगस्त 2025 को प्रातः 11:01 बजे से 01:28 बजे तक (अभिजीत मुहूर्त को विशेष फलदायी माना गया है)।
विसर्जन तिथि (अनंत चतुर्दशी:)
गणपति विसर्जन (Ganapati Visarjan) 6 सितम्बर 2025 (शनिवार) को अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाएगा।
चंद्र दर्शन निषेध (क्यों माना जाता है चंद्र दर्शन अशुभ?)

धार्मिक मान्यता के अनुसार, Ganesh Chaturthi के दिन चंद्रमा का दर्शन निषेध माना गया है। ऐसा करने से मिथ्या दोष (यानी झूठे आरोप लगने का भय) लगता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार गणेश जी ने अधिक मिठाइयाँ खा लीं और उनका पेट बढ़ गया। चलते समय उन्हें ठोकर लगी और वे गिर पड़े। यह दृश्य देखकर चंद्रमा हँसने लगे और उपहास करने लगे।
गणेश जी क्रोधित हो गए और उन्होंने चंद्रमा को शाप दिया कि जो भी व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) की रात तुम्हारा दर्शन करेगा, उस पर मिथ्या दोष (झूठा आरोप) लगेगा। तभी से इस दिन चंद्र दर्शन को अशुभ माना जाता है।
इसलिए श्रद्धालु इस समयावधि में चंद्रमा को देखने से बचें।
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गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? (भगवान गणेश का जन्म और प्रथम पूजनीय बनने की कथा)

भगवान गणेश का जन्म प्रसंग
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने स्नान के समय अपने शरीर के उबटन (चंदन व हल्दी के लेप) से एक बालक की रचना की और उसमें प्राण प्रतिष्ठा कर उसे अपना द्वारपाल बना दिया। जब भगवान शिव वहाँ आए और गणेश ने उन्हें प्रवेश से रोका, तो क्रोधित होकर शिव ने उनका सिर काट दिया। यह देखकर माता पार्वती अत्यंत व्याकुल हो गईं।
देवताओं और पार्वती को शांत करने के लिए भगवान शिव ने तुरंत एक उपाय बताया—पहला जीव जिसका सिर मिलेगा, उसी का सिर लगाकर गणेश को पुनर्जीवित किया जाएगा। संयोग से सबसे पहले एक गज (हाथी) का सिर मिला और उसे लगाकर गणेश को जीवनदान दिया गया। तभी से उनका स्वरूप गजमुख (हाथी का मुख) और नाम “गणेश” पड़ा।
क्यों कहलाए गणेश?
‘गण’ का अर्थ है शिवगण और ‘ईश’ का अर्थ है स्वामी। अर्थात् गणों के ईश – गणेश। शिव ने उन्हें समस्त गणों का अधिपति और सभी देवी–देवताओं में अग्रणी स्थान प्रदान किया।
प्रथम पूजनीय बनने की कथा
एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक बार सभी देवताओं के बीच यह बहस छिड़ गई कि उनमें से सबसे पहले किसकी पूजा होनी चाहिए। इस बात का फैसला करने के लिए भगवान शिव ने एक प्रतियोगिता रखी। उन्होंने सभी देवताओं से कहा कि जो भी सबसे पहले पूरी ब्रह्मांड की परिक्रमा करके वापस आएगा, उसी की पूजा सबसे पहले होगी।
सभी देवता अपने-अपने वाहन पर निकल पड़े, लेकिन गणेश जी ने अपनी बुद्धिमत्ता से माता–पिता (शिव–पार्वती) की परिक्रमा की और कहा कि माता-पिता ही उनके लिए संपूर्ण ब्रह्मांड हैं।
जब कार्तिकेय और बाकी देवता वापस आए, तो उन्होंने देखा कि गणेश जी पहले से ही वहाँ मौजूद हैं। वे हैरान रह गए और पूछा कि गणेश जी ने परिक्रमा इतनी जल्दी कैसे कर ली।
तब गणेश जी ने कहा, “मेरे लिए मेरे माता-पिता ही मेरा पूरा ब्रह्मांड हैं। उनकी परिक्रमा करने से मुझे पूरे ब्रह्मांड की परिक्रमा का पुण्य मिल गया।”
गणेश जी के इस जवाब से सभी देवता बहुत प्रभावित हुए। उनकी बुद्धि और अपने माता-पिता के प्रति प्रेम को देखकर भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि आज के बाद से किसी भी काम की शुरुआत से पहले सबसे पहले गणेश जी की ही पूजा होगी। यही कारण है कि गणेश जी को “प्रथम पूजनीय” कहा जाता है।

भगवान गणेश के द्वादश नाम और उनके अर्थ
भगवान गणेश को शास्त्रों में 108 नामों से संबोधित किया गया है, लेकिन पूजा-पाठ में विशेष रूप से उनके 12 प्रमुख नाम यानी द्वादश नाम का स्मरण किया जाता है। इन नामों का उल्लेख श्लोक रूप में मिलता है, जिसे भक्तजन प्रायः Ganesh Chaturthi या किसी भी शुभ अवसर पर जप करते हैं।
द्वादश नाम श्लोक
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः॥
धूम्रवर्णो भालचन्द्रो विनायकः गणेश्वरः।
गजाननैकदन्तश्च द्वादशैतानि नामानि॥
बारह नाम और उनके अर्थ
- सुमुख – सुंदर मुख वाले।
- एकदंत – एक दाँत वाले।
- कपिल – तपस्वी और ज्ञानस्वरूप।
- गजकर्णक – हाथी जैसे कान वाले।
- लंबोदर – विशाल उदर वाले।
- विकट – कठिनाइयों का समाधान करने वाले।
- विघ्ननाशन – सभी विघ्नों का नाश करने वाले।
- गणाधिप – सभी गणों के अधिपति।
- धूम्रवर्ण – धुएँ के रंग जैसे स्वरूप वाले।
- भालचंद्र – मस्तक पर चंद्र धारण करने वाले।
- विनायक – मार्गदर्शक और श्रेष्ठ नेता।
- गजानन – हाथीमुख वाले, बुद्धि और शक्ति के प्रतीक।
मान्यता है कि भगवान गणेश के इन द्वादश नामों का श्रद्धापूर्वक जप करने से सभी विघ्न दूर होते हैं और जीवन में सुख, शांति व समृद्धि की प्राप्ति होती है।
गणेश जी और उनका वाहन मूषक (चूहा)

भगवान गणेश का वाहन एक छोटा-सा मूषक (चूहा) है। यह देखने में साधारण लगता है, लेकिन इसके पीछे गहरी पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं।
गजमुखासुर की कथा
कथा के अनुसार, एक बार गजमुखासुर नामक राक्षस ने कठोर तप करके वरदान प्राप्त किया और अत्यंत शक्तिशाली बन गया। उसने तीनों लोकों में उत्पात मचाना शुरू कर दिया। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान गणेश ने उससे युद्ध किया और उसे पराजित कर मूषक का रूप दे दिया। पराजित दैत्य ने क्षमा माँगी, तब गणेश जी ने उसे अपना वाहन बनने का वरदान दिया। तभी से मूषक उनका स्थायी वाहन माना जाता है।
क्रौंच गंधर्व की कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, यह मूषक असल में क्रौंच नामक गंधर्व था। घमंड में उसने ऋषि पराशर के आश्रम में उत्पात मचाया। ऋषि ने क्रोधित होकर उसे मूषक बनने का श्राप दे दिया। मूषक रूप में भी वह शरारतें करता रहा, लेकिन जब गणेश जी ने अपने पाश से उसे वश में किया, तो उसका घमंड टूट गया। गणेश जी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर दया दिखाई और उसे अपना वाहन बना लिया।
भगवान गणेश क्यों कहलाते हैं एकदंत?
भगवान गणेश को एकदंत भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है – एक दाँत वाले। लेकिन उनके एक दाँत टूटने के पीछे एक नहीं बल्कि दो अलग-अलग पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं।
1. महाभारत लेखन की कथा
कथा है कि महर्षि व्यास महाभारत की रचना करना चाहते थे। उन्होंने गणेश जी से लिपिक बनने का आग्रह किया। गणेश जी ने शर्त रखी कि लेखन बिना रुके होना चाहिए। व्यास जी ने कहा कि गणेश जी अर्थ समझकर ही लिखेंगे। जब लिखते समय उनकी कलम टूट गई, तो गणेश जी ने अपना एक दाँत तोड़कर उसे कलम बना लिया और लेखन जारी रखा। तभी से वे एकदंत कहलाए।
2. परशुराम और गणेश की कथा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब भगवान परशुराम कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने गए, तो गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। परशुराम क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपने परशु (कुल्हाड़ी) से गणेश जी पर प्रहार कर दिया। यह परशु स्वयं शिव जी का दिया हुआ था, इसलिए गणेश जी ने उसका सम्मान करते हुए वार झेल लिया। इस प्रहार से उनका एक दाँत टूट गया और वे एकदंत नाम से प्रसिद्ध हो गए।
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घर पर गणेश पूजा की विधि
Ganesh Chaturthi के पावन अवसर पर केवल भगवान गणेश के जन्म और कथाओं को जानना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनके समर्पित पूजन और विधियों को अपनाना भी विशेष फलदायी माना जाता है। आइए जानते हैं कि कैसे घर पर सरल और संक्षिप्त तरीके से गणेश जी की पूजा की जा सकती है।
पूजन विधि (संक्षेप में)
- प्रतिमा स्थापना – शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्वच्छ चौकी या पंडाल में स्थापित करें।
- संकल्प – जल लेकर व्रत एवं पूजा का संकल्प करें।
- आवाहन और पूजन – गणेश जी को आवाहित कर दूर्वा, फूल, अक्षत और गंध अर्पित करें।
- भोग अर्पण – मोदक, लड्डू, फल और नारियल चढ़ाएँ (गणेश जी को मोदक विशेष प्रिय हैं)।
- आरती – धूप, दीप प्रज्वलित कर गणपति की आरती करें।
- प्रार्थना – विघ्न विनाश और सुख-समृद्धि की कामना करें।
इन सरल चरणों का पालन कर आप अपने घर पर गणपति बप्पा का स्वागत कर सकते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं।
समापन
गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि श्रद्धा, आस्था और सामाजिक एकता का प्रतीक है। भगवान गणेश को प्रथम पूजनीय देवता माना जाता है, क्योंकि वे बुद्धि, विवेक और विघ्नों के नाशक हैं। हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को देशभर में हर्ष और उल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है।
गणेश जी के विभिन्न स्वरूप, रोचक कथाएँ और पौराणिक मान्यताएँ हमें यह सिखाती हैं कि जीवन में धैर्य, ज्ञान और विनम्रता का कितना महत्व है। इस Ganesh Chaturthi 2025 पर, आप अपने उत्सव को और भी विशेष बनाने के लिए Astrolive की ज्योतिष सलाह के माध्यम से शुभ मुहूर्त और व्यक्तिगत उपाय जान सकते हैं। इससे आपके पूजा का अनुभव और भी फलदायी और आनंदमय बन जाएगा
आइए, इस पावन अवसर पर हम सब मिलकर विघ्नहर्ता गणपति से यही प्रार्थना करें कि वे हमारे जीवन से सभी बाधाएँ दूर करें, सुख-समृद्धि लाएँ और सही मार्ग दिखाएँ।
“गणपति बप्पा मोरया!”
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) – Ganesh Chaturthi 2025
गणेश चतुर्थी (Ganesha Chaturthi) कब है?
गणेश चतुर्थी हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह पर्व बुधवार, 27 अगस्त को मनाया जाएगा।
Ganesh Chaturthi के दौरान कौन-कौन सी मिठाइयाँ विशेष रूप से चढ़ाई जाती हैं?
मोदक, लड्डू, पायस और नारियल की मिठाइयाँ भगवान गणेश को विशेष पसंद हैं।
विसर्जन कब होगा?
गणपति का विसर्जन 6 सितंबर 2025 (शनिवार) को अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाएगा।
चंद्र दर्शन क्यों वर्जित/निषेध माना गया है?
धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथा के अनुसार, गणेश जी के साथ हुए प्रसंग के कारण भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की रात में चंद्रमा का दर्शन मिथ्या दोष (झूठा आरोप) लगने का भय पैदा करता है। इसलिए श्रद्धालु इस दिन चंद्रमा को देखने से बचे।
गणेश जी को प्रथम पूजनीय क्यों माना जाता है?
कथा के अनुसार, गणेश जी ने माता-पिता की परिक्रमा करके बुद्धि और श्रद्धा का प्रमाण दिया। उनके इस कार्य से सभी देवताओं ने उन्हें प्रथम पूजनीय का दर्जा दिया।
क्या Ganesh Chaturthi पर विशेष मंत्र या भजन सुने जा सकते हैं?
हाँ, “ॐ गं गणपतये नमः” मंत्र का जाप और Ganesh Ji Ki Aarti तथा गणेश भजनों का आयोजन विशेष फलदायी माना जाता है।