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गंगा दशहरा: पावन गंगा के धरती पर आगमन का पर्व

गंगा-दशहरा
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भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में नदियों का विशेष स्थान है। इनमें से मां गंगा को सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि जीवनदायिनी देवी माना जाता है। गंगा दशहरा वह पावन दिन है जब मां गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित हुईं। यह दिन मां गंगा के प्रति सम्मान, पुण्य अर्जन और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक भी है। इस दिन गंगा नदी में स्नान, दान-पुण्य और व्रत का विशेष महत्व होता है, जिससे पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि गंगा दशहरा क्या है, क्यों मनाया जाता है, इसकी पूजा विधि क्या है, और 2025 में यह कब पड़ रहा है।

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क्या है गंगा दशहरा?

गंगा दशहरा हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। इसे गंगावतरण के नाम से भी जाना जाता है| यह पर्व ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन स्वर्ग लोक से माँ गंगा धरती पर अवतरित हुई थीं।

‘दशहरा’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘दश’ यानी दस और ‘हरा’ यानी हरण करने वाला। माना जाता है कि इस पावन दिन गंगा नदी में आस्था और श्रद्धा से स्नान करने से व्यक्ति के दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। इन पापों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है: तीन शारीरिक पाप, चार वाचिक पाप और तीन मानसिक पाप।

गंगा दशहरा के दिन, भक्तजन गंगा स्नान, दान-पुण्य और व्रत के माध्यम से आत्मिक शुद्धि प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। वे माँ गंगा की पूजा करते हैं, पूर्वजों को तर्पण अर्पित करते हैं, और अपने पापों से मुक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति की कामना करते हैं। यह पर्व विशेष रूप से हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, ऋषिकेश और गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

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2025 में गंगा दशहरा कब है?

गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को पड़ता है। अगर आप सोच रहे हैं, जून में गंगा दशहरा कब है?’, तो इस साल यह त्योहार 5 जून 2025 को मनाया जाएगा।

  • तिथि की शुरुआत: 4 जून 2025, रात 11:56 बजे
  • तिथि समाप्ति: 6 जून 2025, सुबह 2:18 बजे

हिंदू पंचांग के अनुसार, दशमी तिथि भले ही 4 जून की देर रात शुरू होकर 6 जून की सुबह तक चलती हो, पर हिन्दू परंपरा में तिथि की गणना सूर्योदय के आधार पर होती है। इसलिए गंगा दशहरा का त्योहार 5 जून, 2025 को मनाया जाएगा।

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गंगा दशहरा क्यों मनाया जाता है? (पौराणिक मान्यता और कथा)

गंगा दशहरा का पर्व एक महान पौराणिक गाथा पर आधारित है, जो अटल भक्ति और गहन तपस्या से जुड़ी है।

यह कथा राजा सगर से शुरू होती है, जो सूर्यवंश के एक प्रतापी राजा थे। उन्होंने अपनी शक्ति और प्रभुत्व को सिद्ध करने के लिए एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। देवताओं के राजा इंद्र को भय हुआ कि इस यज्ञ से सगर की शक्ति इतनी बढ़ जाएगी कि वे उनके सिंहासन के लिए खतरा बन सकते हैं। ईर्ष्यावश, इंद्र ने यज्ञ के घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में छिपा दिया।

राजा सगर के साठ हज़ार पुत्र घोड़े की तलाश में कपिल मुनि के आश्रम पहुँचे। उन्होंने ऋषि को चोर समझ लिया और उनकी तपस्या भंग कर दी। अपने अपमान और बाधा से क्रोधित होकर, ऋषि ने अपनी आँखें खोलीं। उनकी क्रोधाग्नि से सगर के सभी पुत्र भस्म हो गए और उनकी आत्माएँ बिना मोक्ष के भटकने लगीं।

कई पीढ़ियाँ बीत गईं, पर कोई भी इन आत्माओं को मुक्ति नहीं दिला पाया। अंत में, सगर के वंशज राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मुक्त करने का संकल्प लिया। उन्होंने माँ गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा सहमत हुए, पर चेतावनी दी कि गंगा का प्रचंड वेग केवल भगवान शिव ही सहन कर सकते हैं, अन्यथा पृथ्वी नष्ट हो जाएगी।
तब भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की। शिवजी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए गंगा को अपनी जटाओं में समेटा और धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित किया। उनकी जटाओं से माता गंगा सात धाराओं में निकलीं, और उनमें से एक धारा भागीरथ के पीछे-पीछे चलती हुई सगर पुत्रों की राख के पास पहुँची। गंगा के दिव्य जल के स्पर्श से उही उनकी आत्माओं को मुक्ति मिल गई, और वे मोक्ष को प्राप्त हुए।

गंगा दशहरा पूजा विधि

गंगा दशहरा का पर्व माँ गंगा के प्रति हमारी श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। इस दिन किए गए स्नान, दान और पूजा-पाठ का विशेष महत्व होता है। यदि आप इस पावन दिन पर माँ गंगा का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो इन विधि-विधानों का पालन कर सकते हैं:

पवित्र स्नान (गंगा स्नान)

इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य गंगा नदी में आस्था के साथ स्नान करना है। माना जाता है कि गंगा में डुबकी लगाने से दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं और आत्मिक शुद्धि मिलती है। यदि गंगा तट पर जाना संभव न हो, तो घर पर नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान करें; यह भी उतना ही फलदायी माना जाता है।

पूजा और अर्घ्य (अर्चना)

गंगा माता की पूजा : इस दिन माँ गंगा की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर उनकी पूजा करें। सफेद फूल, धूप, दीपक, फल और मिठाई अर्पित करें। पूजा के दौरान पास में गंगाजल से भरा कलश भी रखा जा सकता है।

अर्घ्य देना : सूर्य देव और माँ गंगा को जल से अर्घ्य देना न भूलें।

मंत्रों का जाप

आप “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः” जैसे मंत्रों का 108 बार जाप कर सकते हैं। गंगा स्तोत्र का पाठ करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है।

तर्पण

इस पवित्र दिन पर अपने पितरों को तर्पण के रूप में जल अर्पित करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।

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दान

गंगा दशहरा पर दान का विशेष महत्व है। आप अन्न, वस्त्र, जल, मिठाई, फल, तिल, घी, नमक या अपनी इच्छानुसार कोई भी वस्तु दान कर सकते हैं। ब्राह्मणों, गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

व्रत रखें

आप अपनी इच्छा अनुसार फलाहार या जलाहार का व्रत रख सकते हैं। यदि आप व्रत रखते हैं, तो अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार नियमों का पालन करें।

संध्या आरती

यदि संभव हो तो किसी गंगा घाट पर जाकर गंगा आरती में भाग लें। अगर घर पर हैं तो माँ गंगा के सामने दीप जलाकर आरती करें।

हृदय में पवित्रता और सच्ची श्रद्धा के साथ इस गंगा दशहरा पूजा विधि का पालन करने से आपकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, कर्म शुद्ध होते हैं और आध्यात्मिक उत्थान होता है।

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पवित्रता और भक्ति का आह्वान

गंगा दशहरा केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्मिक शुद्धि, पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक उत्थान का एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह दिन हमें माँ गंगा की असीम कृपा और भागीरथ की अटल तपस्या की याद दिलाता है। यह हमें सिखाता है कि कैसे निस्वार्थ भक्ति और कठोर तपस्या से बड़े से बड़े लक्ष्य भी हासिल किए जा सकते हैं, और कैसे मोक्षदायिनी माँ गंगा हमारे पापों को धोकर हमें शुद्ध करती हैं।

इस गंगा दशहरा पर माँ गंगा की कृपा से आपके जीवन में शुद्धता, शांति और समृद्धि का प्रवाह बना रहे। जय गंगा मैया!

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